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Friday, October 10, 2014

Kuchh likha कुछ लिखा


तुमने पूछा था एक दिन
कहो मुझ पर कुछ लिखा
क्या लिखूं तुमपर मैं
देखो आज बातों में हो


विचरती हूँ यहाँ वहाँ
मन उपवन में, सेहरा में
नितांत अकेली भ्रमण करती
पर संग मेरे तुम भी हो


रात्रि में नभ के तारों से
तुम्हारे शब्दचित्र दमकते
दिवस में कुमुददलों की ले
सुगंध, मानसपटल पर छाये हो


नहीं साथी मेरे हो, हो कहते
क्यों साथ मुझे, तुम्हे भाये
दूरी कितनी, दिखे ना, न समझ आये
पर, मैं तुम्हारी, तुम मेरी सोच में हो

11.15pm, 19 sept, 14

8 comments:

  1. रचना पढ़ कर बहुत अच्छा लगी |

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  2. Bhawnaao se ot-prot sunder rachna...badhaayi va shubhkaamnaayein !!

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  3. प्रेम में सब कुछ एक हो जाता है ... जीवंन जाता है ..

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  4. Hey, wish I could read the language because I know you have good poetry. Miss you on WritersCafe!

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Thanks for giving your valuable time and constructive comments. I will be happy if you disclose who you are, Anonymous doesn't hold water.

आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.