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Monday, October 11, 2010

साथ चलना मंजिलों .......


तुम  साथ  न  चल  सके
हम  साथ  न  रख  सके
साथ  छूट  गया  हमारा

तुमसे  चली  हर  कदम
लिए  चली  तुम्हारा  दम
चलना  साथ  रुका  हमारा

हर  मंजिल  पहुँचाया  तुमने
नए  मंजिल  को  फिर  बढ़ने
मंजिलों  चलना  गया  हमारा

क्यूँ  हटना  जरुरी  हुआ
ये  हटना  श्राप  हुआ
हटना  मंजिलों  से  हमारा

न  होगा  साथ  कभी  चलना
रह  गया  मंजिलों  का  हटना
साथ  चलना  मंजिलों ….हट ..ना ...


1:55p.m., 31/7/10

ये रचना 'पाँव के खो जाने' या अंग भंग पर लिखी गई है .
एवं कुछ शब्दों का एक श्रृंखला में प्रयोग किया है, आप जान पाए?

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