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Monday, October 11, 2010

ये पगली बहुत सुंदर लगती है


क्यूँ
करता  है  
मन
हरपल
ध्यान
क्यूँ
हटती
वो  छवि
नैनों  से…..
बैठी  हूँ
प्रभु  भक्ति  को
पर
  जाते  हैं
योगी
ध्यान,
फिर
शुरू
सोचों  का  दौर
कहाँ
एवम 
कैसे
होंगे?
क्या
मुझे  स्मरण
करते  भी
होंगे
हाँ!
करते  तो  हैं
ये  तो तय  है,
वर्ना
तपती  भूमि
में
वो  बूंदें
कैसे  पड़ती  हैं
जिन्हें
सीपी  के  जैसे
यादों  का
अनमोल  मोती
बना  लेती  हूँ
और
उन्हें
मुस्कान  बना
होठों  पर
सजा  लेती  हूँ
सच  कहती  हूँ
तब
बहुत
सुंदर
लगती  है
ये  पगली
सारे  जग  का
श्रृंगार
भी  फीका
लगता  है
उस
मुस्कान  के  आगे
वो  मुस्कान
जो
योगी
से
शुरू
होती  है
और
मुझमें
समा
जाती  है….
हरपल
संवर
जाती  है
इस
पगली  को
और
योगी  के
ध्यान
में
डूबी
पगली
स्वयं  को
देखती  है
योगी  
के  ही
नैनों  से....
वो
नजरें
सँवार
जाती  हैं
रूप-सौंदर्य
और
ये  पगली
सच!
ये  पगली
बहुत  सुंदर  लगती  है
9:54pm, 12/5/10

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