ब्लॉग में आपका स्वागत है

हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है.

आप मेरी शक्ति स्रोत, प्रेरणा हैं .... You are my strength, inspiration :)

Wednesday, July 28, 2010

तुम प्रीतम ना बन सके


मैंने तो नित श्रद्धा जल किया अर्पण,
तुम शंकर ना बन सके

मीरा सम पिया गरल हँसकर,
तुम कान्हा ना बन सके

मैं तो मुग्ध तुम्हे तकती रही,
तुम चन्द्र दर्पण ना बन सके

मैंने कस्तूरी बन तुमको महकाया,
तुम कस्तूरी-मृग ना बन सके

मैं इन्द्रधनुष सी फैली, झलकी,
तुम नीर-नील-गगन ना बन सके

मैं तो बन बैठी मधु प्रिय,
तुम मधु-पात्र ना बन सके

मैंने तो की थी प्रीत ही तुमसे,
तुम प्रीतम ना बन सके.


3:24PM, 16/4/10

5 comments:

  1. मैंने कस्तूरी बन तुमको महकाया,
    तुम कस्तूरी-मृग ना बन सके

    मैं इन्द्रधनुष सी फैली, झलकी,
    तुम नीर-नील-गगन ना बन सके

    kasturi ki trh mehkti kvita mgar mirg-marichika ki trh..schche sukh ko tlasti nayika..adbhut lekhan

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete
  3. शिकवे शिकायत का ये अंदाज - ए-बयां खूब पुरकशिश है

    मैं इन्द्रधनुष सी फैली, झलकी,
    तुम नीर-नील-गगन ना बन सके

    एक निवेदन:

    कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लीजिये

    वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:

    डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?>
    इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..जितना सरल है इसे हटाना, उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये.

    ReplyDelete

Thanks for giving your valuable time and constructive comments. I will be happy if you disclose who you are, Anonymous doesn't hold water.

आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.