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Saturday, February 13, 2010

मै रोती नहीं


जानते हो मैं रोती नहीं
मेरे आंसू तुम्हे रुसवा ना करे कहीं
पूछ ना बैठे कोई, देख उदास मेरा चेहरा
तेरे लिए की दुआओं पर, ना लगे पहरा


मैं सजती-संवरती भी हूँ
पायल, चूड़ी पहनती भी हूँ
जाने ना सच मनजोगन का
कहे ना तू भी रह अब जोगी सा

फूलों संग बातें भी करती हूँ
हवा सी उड़ती फिरती हूँ
जान मेरे रुके क़दमों की सच्चाई
दे ना कोई तुझे रुकने की दुहाई

दिए की बाती में श्रद्धा लौ भरती हूँ'
अभिषेक, तिलक, कर श्लोक पढ़ती हूँ
डूबी हूँ
मैं जिस सूने अंधकार में
भर ना दे वो कहीं तेरे संसार में


पर जब आती हूँ अपने पास
लिए बिखरी हुई टूटी आस
सारे छद्मों को फिर
मैं भूलकर
हो जाती हूँ बस तेरी होकर

श्लोक सारे भूल जाती हूँ
दीप सारे बुझा देती हूँ
हवा पर द्वार बंद कर देती हूँ
खुश्बुओं से नाता तोड़ देती हूँ

मन जोगन को जीने देती हूँ
श्रृंगार सब नोच लेती हूँ
चेहरा हाथों में छिपा लेती हूँ
जानते हो
मैं बहुत रोती हूँ 
6:56p.m., 13 feb, 10

3 comments:

  1. how to praise.....i d=couldn't find suitable word to praise....
    really nice pritty ji..

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  2. जो रात रात भर जगते हो
    तुम कुछ मेरे जैसे लगते हो....

    लफ्ज़ नहीं मिलते, तारीफ में कहना तो यहाँ मुनासिब नहीं पर दर्द की पेशकश कुछ ऐसी है के जैसी अपनी बात लगे है..... Bless u.

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  3. man ki komal samvedanao ko shabdo me dhalane ki kala tumhe ishwer ka vardan hai... tareef ke liye shabd dhund lun tab tak mera maun sweekaro....god bless u...

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